Spread the love महानगर की सबसे बड़ी पब्लिक हित की जिम्मेदारी उठाने वाली नगर निगम अलीगढ़ हर पायदान पर फेल नज़र आती है।अतिक्रमण अभियान पर पब्लिक और व्यापारी संगठनों की उंगली हमेशा उठती रही है। जल भराव से पूरे साल पब्लिक को झेलना पड़ता है। गन्दगी और जाम यहां की पब्लिक को विरासत में मिले हैं। या शहर से डेरियों को बाहर करने की बात हो।अब बात करते हैं। आवारा कुत्तों व गौ वंशो की जो आपको पूरे शहर में कहीं भी घूमते हुए मिल जायेंगें। निगम के आला अधिकारी कितना भी दावा करें की रोज इन गौ वंशों को पकड़ा जा रहा है। लेकिन सवाल ये है कि फिर इनकी संख्या में कमी क्यों नहीं आ रही। सरकार द्वारा दबाव के चलते अधिकारी इन सब पर कार्यवाही करते हैं जो केवल जुर्माने तक सीमित रह जाती है जुर्माने की रकम को निगम के कोष में जमा करा कर अधिकारी अपनी पीठ खुद थप थापते नजर आते हैं। सरकार की अन्य योजनाओं के लिए करोड़ों का बजट है लेकिन इन गौ वंश के लिए केवल 30 पर पशु है जो खर्च का आधा हैं।निगम के पशु चिकित्सा कल्याण अधिकारी डॉ राजेश वर्मा बताते हैं कि एक पशु पर प्रत्येक दिन 58 से 64 रूपे खर्च होते हैं सरकार मात्र 30 रूपे देती है। जो वित्तीय वर्ष में आता है। वर्ष 18-19 में पैसा आया था वर्ष 19-20-20-21 दो साल नहीं आया।21-22 में 65 लाख जारी हुआ।22-23 में फिर नहीं आया। वित्तीय वर्ष 23-24 शुरू हो गया है लेकिन अभी कोई बजट शासन से जारी नहीं हुआ है। निगम की गौ शालाओं की बात करें तो वहां भी क्षमता से अधिक गौ वंश है। कान्हा गौशाला में 350 गौ वंश है बरौला जाफरा बाद बाली गौ शाला में 200 गौ वंश हैं जो वहां की क्षमता से अधिक है। प्रवर्तन दल के मुखिया कर्नल निशित सिंघल बताते हैं कि डेरियों पर मौजूद पशुओं की आधार टैगिंग पशु के कान पर मालिक का आधार नंबर व नाम का टैग लगा दिया जाता है,होनी चाहिए जिससे उस पशु मालिक का पता चल सके और सख्त कार्रवाई हो सके कई बार मीटिंग में ये बात रखी है पर अमल में नही लाई गई। Post navigation डीएम ने कैदियों से वार्ता कर नि:शुल्क सहायता उपलब्ध कराने के निर्देश दिए नेहरू युवा केंद्र ने चलाया कैच द रैन अभियान