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लोहड़ी से संबद्ध परंपराओं एवं रीति-रिवाजों से ज्ञात होता है कि प्रागैतिहासिक गाथाएँ भी इससे जुड़ गई हैं ।पंडित हृदय रंजन शर्मा ने बताया कि सूर्य ढलते ही खेतों में बड़े–बड़े अलाव जलाए जाते हैं। घरों के सामने भी इसी प्रकार का दृश्य होता है। लोग ऊँची उठती अग्नि शिखाओं के चारों ओर एकत्रित होकर, अलाव की परिक्रमा करते हैं तथा अग्नि को पके हुए चावल, मक्का के दाने तथा अन्य चबाने वाले भोज्य पदार्थ अर्पित करते हैं। ‘आदर आए, दलिदर जाए’ इस प्रकार के गीत व लोकगीत इस पर्व पर गाए जाते हैं। यह एक प्रकार से अग्नि को समर्पित प्रार्थना है। जिसमें अग्नि भगवान से प्रचुरता व समृद्धि की कामना की जाती है। परिक्रमा के बाद लोक मित्रों व सम्बन्धियों से मिलते हैं। शुभकामनाओं का आदान–प्रदान किया जाता है तथा आपस में भेंट बाँटी जाती है और प्रसाद वितरण भी होता है। प्रसाद में पाँच मुख्य वस्तुएँ होती हैं – तिल, गजक, गुड़, मूँगफली तथा मक्का के दाने। शीतऋतु के विशेष भोज्य पदार्थ अलाव के चारों ओर बैठकर खाए जाते हैं। इनमें सबसे महत्त्वपूर्ण व्यंजन है, मक्के की रोटी और सरसों का हरा साग है।

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