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महाशिवरात्रि इस बार 18 फरवरी 2023 को शनिवार के दिन मनाया जाएगा और इसी दिन इसका व्रत भी रखा जाएगा। पौराणिक कथाओं में बताया गया है कि इस दिन शिव और शक्ति के मिलन का दिन है, यानि शिव पार्वती विवाह इसी दिन हुआ था।

बेहद शुभ योग में इस बार शिवरात्रि
🍁इस साल शिवरात्रि का त्‍योहार बेहद खास योग में मनाया जा रहा है। इस दिन सर्वार्थ सिद्धि, व्यतिपात योग रहेगा और साथ ही नक्षत्र उत्तराषाढा रहेगा और चंद्रमा मकर राशि में रहेगा। इसलिए इस बार की महाशिवरात्रि बेहद खास मानी जा रही है। इस साल शिवरात्रि की पूजा संपूर्ण विधि विधान के साथ करने से आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होंगी।

🌻महाशिवरात्रि पूजन विधि

💥1- शिवरात्रि के दिन प्रदोष काल में या आधी रात के समय स्नान करने के बाद पारद शिवलिंग या स्फटिक शिवलिंग की स्थापना करें. अब गंगाजल, यदि आपके पास गंगाजल नहीं है तो शुद्ध जल में थोड़ा सा गंगाजल मिलाकर शिवलिंग पर चढ़ाएं.

💥2- अब दूध, दही, घी, शहद और शक्कर से भगवान शिव को स्नान कराएं.

💥3- इसके बाद भगवान शिव को चंदन लगाकर फूल, बिल्वपत्र चढ़ाएं. इसके बाद धूप, दीप से भगवान शिव की पूजा करें, यदि आप शीघ्र फल पाना चाहते हैं तो महाशिवरात्रि के दिन शिवलिंग के सामने बैठकर नीचे दिए गए मंत्रों में से किसी एक मंत्र की एक माला जाप करें.

🌸ओम नमः शिवाय

🌺ओम तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रूद्र प्रचोदयात

🍁ओम त्र्यंबकम यजा महे सुगंधिम पुष्टिवर्धनम उर्वारुकमिव बंधनात मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्

💥महाशिवरात्रि व्रत कथा
🔥शास्त्रों के अनुसार बहुत समय पहले वाराणसी के जंगलों में एक भील निवास करता था. इस भील का नाम गुरुद्रुह था. भील जंगली जानवरों का शिकार करके अपने परिवार का पालन पोषण करता था. एक बार शिवरात्रि के दिन भील शिकार करने के लिए जंगल गया. उस दिन भील को कोई भी शिकार नहीं मिला तो वह एक झील के किनारे एक पेड़ पर चढ़ गया और सोचने लगा कि अगर कोई जानवर पानी पीने आएगा तब वह उसका शिकार कर लेगा.जिस पेड़ पर भील चढ़ा था वह एक बिल्ववृक्ष था और उस पेड़ के नीचे शिवलिंग की स्थापना की गई थी. कुछ समय के पश्चात झील के किनारे एक हिरणी पानी पीने के लिए आई. जैसे ही शिकारी ने हिरनी को मारने के लिए धनुष पर तीर चढ़ाया तो बिल्ववृक्ष के पत्ते टूटकर शिवलिंग पर गिरे. बिल्वपत्र के शिवलिंग पर गिरने की वजह से अनजाने में ही रात के पहले पहर में भील के द्वारा शिवलिंग की पूजा हो गई और हिरनी भी वहां से भाग गई.थोड़ी देर के पश्चात एक दूसरे हिरनी झील के किनारे आई. शिकारी ने फिर से धनुष पर बाण चढ़ाया. इस बार एक बार फिर से बिल्ववृक्ष के पत्ते टूटकर शिवलिंग पर गिरे और फिर से अपने आप शिवलिंग की पूजा हो गई. यह देखकर दूसरी हिरणी भी वहां से भाग गई.इसके पश्चात हिरनी के परिवार का एक दूसरा हिरण वहां आया. एक बार फिर से वही सब हुआ और तीसरे प्रहर में भी अपने आप शिवलिंग की पूजा हो गई. वह हिरण भी वहां से भाग गया. अब हिरण अपने पूरे परिवार के साथ झील के किनारे पानी पीने आया. इतने सारे हिरणों को देखकर शिकारी बहुत प्रसन्न हुआ और उसने फिर से धनुष पर अपना बाण चढ़ाया. जिससे चौथे प्रहर में एक बार फिर से शिवलिंग की पूजा हो गई.इसी प्रकार शिकारी पूरा दिन भूखा प्यासा रह कर रात भर जागता रहा और रात के चारों पैरों में अनजाने में उससे शिवजी की पूजा हो गई.जिससे उस शिकारी का शिवरात्रि का व्रत सफलता पूर्वक पूर्ण हो गया. इस व्रत के प्रभाव से शिकारी के सभी पाप नष्ट हो गए और उसे पुण्य प्राप्त हुआ.शिकारी ने हिरणो को मारने का ख्याल छोड़ दिया. तभी शिवलिंग से भगवान शिव प्रकट होकर शिकारी से बोले कि मैं तुमसे प्रसन्न हूं और उन्होंने शिकारी को वरदान दिया कि त्रेतायुग में भगवान राम तुम्हारे घर पधारेंगे और तुम्हारे साथ मित्रता निभाएंगे. तुम्हें मोक्ष भी मिलेगा.इस प्रकार अनजाने में किए गए शिवरात्रि व्रत के प्रभाव से भगवान शंकर ने शिकारी को मोक्ष प्रदान किया.

🍁शिवरात्रि का महत्व
🌸शिवरात्रि के दिन पूरा दिन व्रत करके श्रद्धा पूर्वक भोलेनाथ की पूजा अर्चना करनी चाहिए. ऐसा करने से मनुष्य को भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है और उसके जन्म जन्मांतर के पाप दूर हो जाते हैं.

🏵शिवरात्रि का व्रत करने से मनुष्य इस लोक में सुख पूर्वक रहकर अंत में शिवलोक को प्राप्त होता है.

⭐यदि आप व्रत करने में असमर्थ हैं तो शिवरात्रि के दिन पूरा दिन व्रत करने के बाद शाम के समय भगवान शिव की पूजा अर्चना करके अपना व्रत खोल सकते हैं.

🌷 श्रद्धा पूर्वक व्रत करने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं. शिवरात्रि के दिन पूरी रात जागरण करके भगवान शिव की भक्ति करने से मनुष्य के जीवन के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं.

💥शिवरात्रि से जुडी खास बाते

🌺महाशिवरात्रि की रात महा सिद्धिदात्री मानी जाती है. इस समय किए गए दान, शिवलिंग की पूजा और स्थापना का बहुत महत्व होता है.

🔥 शिवरात्रि की रात में आप स्फटिक या पारद शिवलिंग को अपने घर या व्यवसाय स्थल पर स्थापित कर सकते हैं.

💥 शास्त्रों में पारद शिवलिंग को बहुत ही महत्वपूर्ण माना गया है. यह एक प्रकार की धातु होती है जिससे शिवलिंग बनाया जाता है.

🌻पारद शिवलिंग को शिव पुराण में भोलेनाथ का वीर्य बताया गया है. वीर्य एक प्रकार का बीज होता है जो संपूर्ण सृष्टि की उत्पत्ति का कारक होता है.

🌸पारद का भोलेनाथ से सीधा संबंध होने की वजह से यह बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है. यदि आप श्रद्धा पूर्वक पारद शिवलिंग का दर्शन करते हैं तो इससे आपको अतुल्य पुण्य फलों की प्राप्ति होती है.

🏵 गृहस्थ लोगों के लिए पारद के साथ-साथ स्फटिक शिवलिंग की पूजा और स्थापना भी बहुत अच्छी मानी जाती है. स्फटिक शिवलिंग की पूजा, अभिषेक और दर्शन करने से कभी भी धन की कमी नहीं होती है और आपका स्वास्थ्य हमेशा अच्छा रहता है.
हिंदू धर्म में महाशिवरात्रि के पर्व को बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है. शास्त्रों में शिवरात्रि को भगवान शिव की पूजा और आराधना का मुख्य दिन माना गया है. महाशिवरात्रि का पर्व फाल्गुन कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाया जाता है. भोलेनाथ को विश्व की सर्वोच्च शक्तियों में से एक माना जाता है. हमारे वेद पुराणों और भाषा ग्रंथों में शिव की महिमा और गरिमा का विस्तृत वर्णन किया गया है. आज हम आपको इस आर्टिकल के द्वारा महाशिवरात्रि के रहस्य से अवगत कराने जा रहे हैं.

🍁शिवरात्रि में रात्रि का रहस्य

🌺अक्सर लोगों के मन में यह ख्याल आता है कि सभी देवी देवताओं की पूजा दिन में की जाती है, पर भोलेनाथ को रात्रि से इतना लगाव क्यों है और वह भी फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी तिथि की रात्रि ही क्यों?

🔥 यह सभी जानते हैं कि भगवान शिव संघार शक्ति और तमोगुण के स्वामी है. इसीलिए रात्रि से उनका विशेष लगाव स्वाभाविक है. रात्रि को संघार काल माना जाता है. रात्रि के आते ही सबसे पहले प्रकाश पर अंधकार का साम्राज्य कायम हो जाता है.

💥सभी जीव जंतुओं और प्राणियों की कर्म चेष्टाएँ खत्म हो जाती हैं और और निद्रा द्वारा चेतना का भी अंत होता है. पूरी दुनिया रात्रि के समय अचेतन होकर निद्रा में विलीन हो जाती है.

🌻 ऐसी परिस्थिति में प्राकृतिक दृष्टि से शिव का रात्रि प्रिय होना सहज होता है. इसी वजह से भोलेनाथ की पूजा-अर्चना इस रात्रि में और हमेशा प्रदोष काल में की जाती है.

🌟 शिवरात्रि का कृष्ण पक्ष में आने का भी एक विशेष अर्थ है. शुक्ल पक्ष में चंद्रमा अपना पूर्ण रूप ले लेता है और कृष्ण पक्ष में धीरे-धीरे चंद्रमा की रोशनी कम होती जाती है.

🏵जैसे जैसे चंद्रमा बढ़ता है, वैसे वैसे संसार के सभी रस्वान पदार्थों में वृद्धि और घटने पर सभी पदार्थ क्षीण हो जाते हैं. चंद्रमा के क्षीण होने का असर प्राणियों पर भी पड़ता है.

🌸 जब चंद्रमा क्षीण होता है तो जीव जंतुओं के अंतः करण में तांत्रिक शक्तियां प्रबल होने लगती हैं. जिसके कारण उनके अंदर तरह-तरह की अनैतिक और आपराधिक गतिविधियां जन्म लेती हैं.

🌷भूत प्रेत भी इन्हीं शक्तियों में से एक है, और शिव को भूत प्रेत का स्वामी माना जाता है. दिन में जब प्रकाश रहता है तब जगत आत्मा अपनी शक्तियों का इस्तेमाल नहीं कर पाती हैं, पर रात्रि के अंधकार में यही शक्तियां बलवान हो जाती हैं.

🌺इन्हीं शक्तियों का नाश करने और इन्हें नियंत्रण में रखने के लिए शिव को रात्रि प्रिय माना गया है. जिस प्रकार पानी की गति को रोकने के लिए पुल बनाया जाता है, उसी प्रकार चंद्रमा के क्षीण होने की तिथि आने से पहले उन सभी तामसी शक्तियों का नाश करने के लिए शास्त्रों में शिवरात्रि की आराधना करने का विधान बनाया है.

🔥 कृष्ण चतुर्दशी की रात्रि में आराधना करने का यही रहस्य है, पर आप यह सोच रहे होंगे कि कृष्ण चतुर्दशी को हर महीने आती है. तब उसे महा शिवरात्रि क्यों नहीं कहते हैं.

🌟फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की विशेषता

🌻 हमारे शास्त्रों में सभी शिवरात्रि को महत्वपूर्ण माना गया है, पर जैसा कि हमने पहले बताया है कि अमावस्या के दुष्प्रभाव से बचाव के लिए उसके 1 दिन पहले चतुर्दशी के दिन यह है पूजा की जाती है.

🌸उसी तरह से साल के अंतिम महीने से ठीक 1 महीना पहले महाशिवरात्रि की पूजा का नियम शास्त्रों में बताया गया है. भोलेनाथ संघार के अधिष्ठाता होने के बावजूद कल्याण कारक कहलाते हैं.

💥इसकी वजह यह है कि विनाश में भी सृजन के बीज छुपे रहते हैं. जब तक किसी वस्तु का विनाश नहीं होता है तब तक दूसरी वस्तु का सृजन नहीं होता है. शिव संघार करने के साथ-साथ संसार का कल्याण भी करते हैं. इसलिए उन्हें शिव कहा जाता है.

🍁शिवरात्रि में उपवास और रात्रि जागरण का महत्व

🔷 सभी लोग शराब, भांग, अफीम आदि पदार्थों की मादकता से परिचित है, पर शायद सभी लोगों के लिए इस बात का विश्वास करना मुश्किल है कि अन्न में भी मादकता होती है. इस बात को सिद्ध करने के लिए हमें विशेष प्रमाणों की जरूरत नहीं है.

🔶 भोजन ग्रहण करने के बाद शरीर में आलस्य और तंद्रा के रूप में भोजन के नशे को सभी लोग महसूस करते हैं. अन्न अनेक प्रकार की ऐसी पार्थिव शक्ति से भरपूर होता है जो पार्थिव शरीर से मिलकर 2 गुना बलशाली हो जाता है.

🔷 इस शक्ति को हमारे शास्त्रों में आदिभौतिक शक्ति कहा गया है. शक्ति की प्रबलता उस आध्यात्मिक शक्ति से की जा सकती है जिसे हम उपासना और तपस्या द्वारा पाना चाहते हैं.

🔶 इस तथ्य को अनुभव करके हमारे ऋषि-मुनियों ने संपूर्ण आध्यात्मिक शक्तियों में उपवास को प्रथम स्थान में महत्वपूर्ण बताया है. शास्त्रों के अनुसार उपवास विषय निवृत्ति का अचूक साधन माना गया है.

🔷क्योंकि जब पेट में अन्न जाता है तो लोगों को उसके बाद फिल्में देखना, गाना सुनना, ताश खेलना, घूमना फिरना अलग-अलग तरह के इंद्रिय व्यापार दिखाई देते हैं, परंतु भूखे पेट इन सभी विषयों पर ध्यान नहीं जाता है.

🔶इसीलिए अध्यात्मिक शक्ति को आश्रय देने के लिए जरूरी है कि आप उसके लिए जगह खाली करें और ऐसा सिर्फ उपवास से ही संभव हो सकता है.

🔷शिवरात्रि में रात्रि जागरण का सीधा अर्थ यह है कि जब संपूर्ण जगत अचेतन होकर निद्रा में लीन हो जाता है तब सयंमी लोग जिन्होंने उपवास द्वारा अपने इंद्रियों पर विजय प्राप्त की है जाग कर अपने सभी कार्यों को पूर्ण करते हैं.

🔶जब लोग रात के समय जाकर अपनी लक्ष्य सिद्धि के लिए प्रयास करते हैं तब शिव की उपासना करने के लिए सबसे उचित समय होता है.

🔷इसके अलावा रात्रि प्रिय शिव से मिलने के लिए यह अवसर श्रेष्ठ रहता है. वास्तविकता यह है कि शिवरात्रि के अवसर पर अगर आप सच्चे मन से शिव व्रत करते हैं तो यह उपवास और जागरण अपने आप ही पूर्ण हो जाता है|

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